भोजन करते समय ध्यान दें!! Health Tips
ईश्वर ने प्राणीमात्र को आहार का विवेक दिया है, पर मनुष्य को यह विशेष रूप से प्रदान किया है। मात्र मनुष्य ही विवेक का सदुपयोग कर इन पर विचार कर सकता है।
संतुलित भोजन
हमारे लिए कितना खाना आवश्यक है और हमारा संतुलित आहार कैसा होना चाहिए-इस पर विचार करें। जिन लोगों को शारीरिक श्रम करना पड़ता है जैसे आॅफिस में काम करने वाले लोग अथवा सेवानिवृत्त कर्मचारी, उनको अधिक मात्रा में भोजन की आवश्यकता नहीं है। जो लोग शारीरिक श्रम अधिक करते हैं उनके भोजन की मात्रा अधिक होनी चाहिए। पर वास्तविकता के धरातल पर प्रायः विपरीत स्थिति ही देखी जाती है। कम शरीरिक श्रम करने वाले अधिक और बार-बार भोजन करते हैं और अधिक शारीरिक श्रम करने वाले कम। अतः हम देखते हैं कि धनी लोगों को मोटापा, पाचन सम्बन्धि रोग पाये जाते हैं। खाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि भोजन आवश्यकता से थोड़ा कम किया जाए।
अनियमित भोजन न करें
अनियमित भोजन स्वास्थ्य के लिए अति हानिकारण है। हमारी पाचन-क्रिया सीमित है, इसलिए कब्ज़, गैस, अपच की बीमारी हो जाती है। इससे पाचन-क्रिया में गड़बड़ी होती है। अधिकांश लोग अनियमित आहार करते हैं-कभी कम, कभी ज्यादा। आहार न तो अधिक मात्रा में होना चाहिए न ही कम मात्रा में। सामान्य मर्यादा तो यह है कि कम से कम चार घंटे तक फिर से अन्न न लिया जाए। प्राचीन काल में तो केवल दो बार खाने की रीति थी, पर आजकल तो दिन-भर कुछ-न-कुछ खाते ही रहते हैं, यह ठीक नहीं हैं।
उचित तरीके से भोजन करें
आजकल हम खाने में कम और बेकार की बातचीत करने में अधिक समय लगाते हैं। खड़े-खड़े, चलते-फिरते, लेटे-लेटे आहार लेना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। ठीक समय पर ठीक स्थान पर बैठकर, चिन्तारहित होकर, शान्त वातावरण में धीरे-धीरे चबाकर ही आहार लेना स्वास्थ्यवर्धक है।
खाना शुरू करने से पहले हाथ-मुँह और पैर अवश्य धोने चाहिए क्योंकि कहा गया है कि जो गीले पैरों से भोजन करता है वह दीर्घायु होता है। अन्न का सदैव आदर करें क्योंकि इस प्रकार ग्रहण किया हुआ भोजन प्रतिदिन आपके बल और पराक्रम को बढ़ाता है। भोजन ग्रहण करने के आधे घंटे बाद जल लेना चाहिए।
भोजन मे स्वाद
आहार में स्वाद को अधिक महत्व दिया जाता है। चीनी, नमक और चिकनाई-ये तीनों भोजन के अनिवार्य अंग बन गये है। अधिक नमक खाने से हृदय रोग, गुर्दे का रोग, रक्तचाप चर्मरोग आदि पनपते हैं। जैसे शरीर में कृत्रिम नमक उपयोगी नहीं है, वैसे ही चीनी भी उपयोगी नहीं है। चीनी तो सहज ही चावल, रोटी, दूध आदि में होती है। बहुत चीनी के सेवन से कई बीमारियाँ होती हैं तथा दाँत भी खराब हो जाते हैं। मसालेदार, तली हुई और अनेक प्रकार के व्यन्जन एवं नमकीन भोजन स्वास्थ्य के लिए हानिकारण हैं। इससे अपच होना स्वभाविक है। बहुत गरम मसालेदार अथवा बहुत ठंडा भोजन भी आँतो में दिक्कत करता है और अनेक प्रकार के रोगों का कारण बनता है।
जूठे भोजन से बचें
दूसरे की जूठी कोई चीज खाना या खिलाना सर्वथा हानिकारक है। जूठी चीजों के सेवन से विचारों में विकृति आती है, बुद्धि दुर्बल हो जाती है और शरीर में कई रोग होने का खतरा भी होता है। उदाहरणार्थ-डाॅक्टर किसी रोगी की नब्ज देखकर अथवा उसका उपचार कर सावधानी से हाथ धोता है, क्योंकि कीटाणुओं का भय रहता है। जब छूने भर से कीटाणुओं का संक्रमण है तब थूक लगे जूठे पदार्थों में कीटाणुओं का भय नहीं है, यह मानना ही बैमानी है।
आहार का दूसरा पहलू ‘निराहार’
स्वास्थ्य के लिए उपवास भी जरूरी है। हमारे लिए खाना जितना महत्वपूर्ण है उतना ही ‘नहीं खाना’ भी। बहुत से लोग भोजन करने का महत्व तो समझते हैं पर उसे छोड़ने का नहीं, वे लोग अनेकानेक बीमारियों को भोगते रहते हैं। अधिक खाने वाले कमजोर दिखाई देते हैं क्योंकि उन्हें अपना अधिक भार को दिन भर ढोना पड़ता है।
अतः विवेकपूर्ण आहार से ही शान्त, सुखी, स्वस्थ्य जीवन पूर्ण रूप से व्यतीत किया जा सकता है क्योंकि शरीर के अस्वस्थ रहने पर मनुष्य यदि मन से कुछ सोचता भी है तो वह कुछ कर नहीं सकता है।
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