कुरूपता | Malik Mohammad Jayasi Hindi Story
मलिक मुहम्मद जायसी (Malik Mohammad Jayasi) (सन् 1475-1542 ई.) भक्तिकालीन हिन्दी-साहित्य के महाकवि थे। वे निर्गुण भक्ति की प्रेममार्गी शाखा के सूफी कवि थे। उन्होंने कई ग्रन्थों की रचना की। अवधी भाषा में लिखा हुआ उनका ‘पद्मावत’ ‘Padmawat’ नामक ग्रन्थ विशेष प्रसिद्ध है। उन्होंने जगत् के समस्त पदार्थों को ईश्वरीय छाया से प्रकट हुआ माना है। उनकी मान्यता थी कि इस सृष्टि में जो भी रूप दिखाती देता है, वह परमात्मा ही है। परन्तु दुर्भाग्यवश वे स्वयं कुरूप (ugly) एवं काने (उन्हें एक आंख से दिखाई नहीं देता था) भी थे।
एक बार वे दिल्ली के तत्कालीन बादशाह शेरशाह सूरी (Shershah Suri) से मिलने के लिए उनके दरबार में गये। ज्यों ही वे दरबार पहुंचे, उनकी चाल-ढाल, रूप-रंग और कुरूपता (ugliness) को देखकर सारे दरबारी ठठाकर हंसने लगे। इस अप्रत्याशित ठहाके को सुनकर उनके पांच ठिठक गये। उन्होने दरबारियों पर एक नजर डाली और शान्त भाव से बोले-
‘किस पर हंस रहे हो, मुझ पर या मुझे बनाने वाले पर?
उनके इस प्रश्न से सभी दरबारी स्तब्ध रह गये। उनके सिर शर्म से झुक गये।
महाकवि जायसी ने अपने एक ही प्रश्न से दरबारियों को बता दिया कि किसी की कुरूपता (ugliness) पर हंसना मनुष्य के निर्माता भगवान पर ही हंसना है।
प्रस्तुतिः पं राकेश ध्यानी
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sundar kafi achacha pryas hai jarur se jaysi ke bare me anubhaw milega